बच्चा
दुनिया की इस भीड़ में
जिम्मेदारियों के बोझ तले
गंभीरता के मुखौटे के पीछे
बंद है दिल के किसी अंधेरे कोने में
एक छोटा बच्चा जो तड़प रहा
बाहर निकलने को
वो बच्चा जो कभी तितलियों के पीछे
तो कभी मां के आंचल के नीचे
हंसता खेलता डोलता था यहां वहां
छल कपट, धोखे फरेब से दूर
अपनी छोटी सी दुनिया में रहता था खुश
चंद खिलौनों से बहल जाता था
बारिश की बूँदों में खेलता था जो
ठहरे पानी में कागज की कश्ती चला
हवा में अखबार के हवाई जहाज उड़ा
दुनिया भर की खुशियां पा लेता था वो
ना कोई लालच ना ही थी कोई तमन्ना
पल में रूठता, फिर खुद ही मान जाता
खुशियों के रंगों में, भीगता रहता था जो
अपनी ही धुन में रहता मगन
मासूम शैतानियों से जीतता था सबका मन
निर्विकार, निर्भीक सीधा सच्चा वो बच्चा
अपने फर्ज निभाते निभाते
इस फर्जी दुनिया में ना जाने कहां खो गया
आओ, ढूंढे उसे जरा
जो दब गया है कहीं उम्र के मलबे में
आओ उसे खींच कर बाहर निकाले
कुछ पल के लिए ही सही
हावी होने दे उस बच्चे को
अपनी वयस्क शख्सियत पर
परे रख दे दुनियादारी के झमेलों को
एक बार फिर लौट चले
उस बेफिक्री मस्त दुनिया में
।